संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के अन्तर्गत राष्ट्रीय संस्मारक प्राधिकरण (रा.सं.प्रा.) की स्थापना प्राचीन संस्मारक और पुरातात्विक स्थल और अवशेष (एएमएएसआर) (संशोधन और विधिमान्यकरण) अधिनियम, 2010 के प्रावधानों के अनुसार की गई है, जो मार्च, 2010 में अधिनियमित किया गया था। राष्ट्रीय संस्मारक प्राधिकरण को केंद्रीय संरक्षित स्मारकों के समीपस्थ प्रतिषिद्ध और विनियमित क्षेत्र के प्रबंधन के माध्यम से स्मारकों और स्थलों के संरक्षण और परिरक्षण से संबंधित कई कार्य सौंपे गए हैं। राष्ट्रीय संस्मारक प्राधिकरण अपने इन उत्तरदायित्वों में आवेदकों को प्रतिषिद्ध और विनियमित क्षेत्र में निर्माण संबंधी गतिविधियों के लिए अनुमति प्रदान करने पर भी विचार करता है।
बढ़ते नगरीकरण, विकास, जनसंख्या वृद्धि और इसके बढ़ते दबाव से, भूमि पर दबाव बढ़ रहा है जिसमें केंद्रीय संरक्षित स्मारकों के समीपस्थ भूमि भी सम्मिलित है। चूंकि इससे प्राय: स्मारकों/ स्थलों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि एक ओर नागरिको की आवस्यकताओ और विकास एवं वृद्धि और दूसरी ओर इन स्मारकों के संरक्षण और परिरक्षण की आवश्यकताओं के मध्य संतुलन स्थापित करते हुए केंद्रीय संरक्षित स्मारकों के समीपस्थ इस प्रकार का विकास भलीभांति विनियमित किया जाए।
प्राचीन संस्मारक तथा पुरातात्विक स्थल और अवशेष अधिनियम में संशोधन के बाद इन प्रावधानों में 2010 में परिवर्तन किया गया है। राष्ट्रीय संस्मारक प्राधिकरण और सक्षम प्राधिकारियों (सीए) की स्थापना की गई है और अब प्रतिषिद्ध एवं विनियमित क्षेत्र में निर्माण संबंधी कार्य के सभी आवेदन सक्षम प्राधिकारियों और तदुपरांत, राष्ट्रीय संस्मारक प्राधिकरण के समक्ष प्रस्तुत किए जाते हैं।
2010 अधिनियम के द्वारा अधिनियम में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं:-
अधिनियम में राष्ट्रीय संस्मारक प्राधिकरण के गठन का प्रावधान है जिसमें एक पूर्णकालिक अध्यक्ष और अधिकतम 5 पूर्णकालिक और 5 अंशकालिक सदस्य और एक सदस्य सचिव की व्यवस्था है। महानिदेशक, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण इसके पदेन सदस्य हैं।